Friday, March 26, 2021


الفنانة المغربية إحسان توتان 

                      

صوت قيثارة الأندلس . وطرب إعادة التراث المفقود


صوت يحمل حنجرة السواحل وأعاصير امواج تعزف لإعادة إحياء الحلم المفقود الذي عبر هجرات الأندلسيين بعد  سقوط غرناطة سنة897هـ/1492م  مجد ذلك "الفردوس المفقود". فنه المحمل بأصالة الطرب وعذوبته الذي ترك أثره في عالمنا العربي الذي ظل يتغنى به عسى ان جزء من ملامح الموسيقى والغناء الأصيل الذي اعتمد أساسيات الطرب وجودته وعذوبة الاستماع  واستمتاع الأذن بشغف اليه حتى امتد الى كل مشارف الفن العربي ..ولكن المغرب ودول الساحل كانت الأولى به لقربها منه ..وهنا كانت المغرب هي الحاضن الأول للإبداع فيه.. وامتد تأثير الموسيقى الأندلسية إلى الغناء الشعبي القائم على الزجل.. حتى أخذ يقترب  من القصيدة الفصحى وكان أساس الموسيقى المغربية بألحان وموازين جديدة. وتأسيس مقام “نوبة الاستهلال” ومنه تفرعت والمقامات،  وبعد ان اصبح من التراث المغربي بل وحتى العربي وانتشاره في كل البلدان العربية وحتى العراق الذي يسمى الموشح الأندلسي والذي يغنى في المناسبات الدينية وأبرز نغمة البيات..  وكان أول انتشاره في فاس ووجدة وتطوان ..ويغنى باللغتين الفصحى والشعبية ..ويغنى في الافراح والاعراس والمناسبات الصوفية .وهنا كان للمطربة إحسان توتان مشارك دولية فيه في أغلب الدول العربية وقد حصلت على العديد من الجوائز من عدت مهرجانات دولية ..والدة الفنانة في مدينة الفن الأندلسي ومركزه الخصب تطوان وتعلمت أصول الغناء على يد أبرز الفنانين والمختصين فيه وهو الفنان عبد الصادق شقارة ..ونتيجة لطبقة صوتها العالية التي يغنى فيها المقام الأندلسي أصبحت من كبار الفنانات المغربيات لإعادة هذا التراث العربي الذي أصبح في ماضي الايام كما هو حال المقام العراقي اليوم .وتتوزع  الطرب الأندلسي إلى ثلاث مدارس: ..-مدرسة الآلة الأندلسية .. مدرسة الطرب الغرناطي ... مدرسة المألوف… وأصبح له مريدين ومستمعين والعودة إليه. بعد ان فسد الذوق المستمع العربي بالاستماع الى الأغاني الهابطة والراقصة المبتعدة عن الرصانة السمعية واسفاف الكلام وسرعة اللحن الهابط ..ولا أحد ينكر الآن مبدعتنا الفنانة إحسان توتان اليوم فهي علامة فنية وبصمة في عالم التراث العربي وثقافة الاغنية التي تجيدها بصوت يهزك بجمال الطرب وجمال الروح ووسامة المرأة العربية والفن الاصيل ..

Monday, March 8, 2021

 

عزيز منتصر

إلى جميع  نساء العالم وأنتِ  ....

                     

أنت كالصباح جمالا

أسطورة وجه السنين

وكتاب حياة

أنت عناق

الفجر والليل 

وسادة الهدوء 

أنت أنفاس محتضر

متوجع

وسمير  الوحدة

أنت ابتسامة قمر 

تلامس أزهار الحدائق

وأشواك البراري

بدفئ 

لتوقظ شيئا نائما

انتظر طويلا 

 أصابع الشمس

ليصبح قطرة حياة

ولاَّدة 

في فجر الربيع 

في تأوه الخريف

في ظهيرة الصيف 

في كل الأمم

لتنهض 

بين أظافر البرد 

وقبضة الغيوم

فينبسط الماء 

من ثغرها المبلل 

المرطب بقبلات                                                                  

الشتاء

وعليها يقوم كل شيء

كل شيء 

أيها الموت 

خذ مني كل شيء

واترك روح الأنثى

تعيش مع مماتي

في ترابي 

ومعي في السماء

Friday, February 12, 2021

 قاصرة قصيدة للشاعر عزيز منتصر  Aziz Mountassir Aziz Mountassir 

ترجمة Abdelhamid Benjelloun 

mineure.



 Le coeur blessé et  l'âme stressée, une pauvre fille mineure aux  paroles enfantines et amusantes, fait semblant d'être joyeuse de son mariage en voilant ses Souffrances.

On dirait une toile abstraite dont les couleurs reflètent le regret, et le pinceau exprime l'injustice d'une mère attachée aux traditions dépassées, conduisant sa fille mineure vers un foyer où régnera l'hiver de la vieillesse.

Est ce que la mineure a accepté cette union prématurée de son plein gré?

Sera - t-elle libre de vivre en pleine lumière du jour au lieu de

L'obscurité de la nuit ?

A qui doit elle se plaindre alors qu'elle a perdu tous ses rêves

et espoir en la vie.?






Pauvre fille mineure au corps chétif . Elle ne vivra ni le printemps  de son enfance ni l'été de sa jeunesse.


"Mère, as-tu compris ?"


"Père, il parait que tu es loin de comprendre "

Saturday, February 6, 2021

 BEYRUT YANIYOR !

By Caroline laurent

Tut elimi omzuma koy Beyrut !

Mutluluktan söz et bana,olanlar beni umutsuz ediyor...

Acıyla kırıyorlar harcını,bir koyun gibi bacağından asıyorlar ...


Haydi kalk kendine gel !

Sen kalkmasan kimse kaldırmaz seni

Kulaklar kimsenin şikayetini duymaz

Kalk bütün seslerin arasından sıyrıl

Kırbaç sesini dinleme yalnızca 


Bak vücuduna dokunuyorlar

Bak seni boynundan öpüyorlar 

Bak ırzına geçiyorlar 

Nefret vadileri köpürüyor 

Tenin kederle soluyor 

Kadınlar siyah giyer


Kanadını tak  Beyrut gölgeler beni ürkütüyor 

Arkana bak yanan ateş hazdan değil

Bıçakları beliyorlar mağarada ağı örüyorlar 

Olmasın nazdan mahvın


Sen ki solmuş defneler peşinde koşmayan sın 

Kalk yenilgiye yenilme 

Güneşin karşısında dikil ve güneş ol 

Yoksa seni koyun gibi Meletirler...

Ve senden hiç kimse söz etmez olur

Tarihin arka sayfalarında eski bir Beyrut

 By Ashok Kumar

PURE HEART ! 


Almighty doesn't make a mistake 

He knows who's real who's fake 

Can we judge anyone ? 

Feeling  his light isn't a fun 

We're his valuable  part 

Universal souls we're of his wonderful art 

Lovely flowers of his eden 

Spreading fragrance  freely , nothing is hidden 

O world ! feel his presence 

Here's peace here's essence 


शुद्ध हृदय !


सर्वशक्तिमान कोई गलती नहीं करता

वह जानता है कि कौन असली है कौन नकली

क्या हम किसी का न्याय कर सकते हैं?

उसकी रोशनी महसूस करना आसान नहीं है

हम उसके  मूल्यवान हिस्से  हैं

सार्वभौमिक आत्माएं उसकी अद्भुत कला हैं

उनके एडेन के लवली फूल

सुगंध को स्वतंत्र रूप से फैलाना ही हमारा काम है , कुछ भी छिपा नहीं है

हे संसार! उसकी उपस्थिति महसूस करो

यहाँ शांति यहाँ जीवन का सार है


भारत


INDIA 

FEBRUARY 02,2021

©®

ASHOK Kumar

नाबाळगी

Aziz Mountassir Morocco by

Meethesh Nirmohi - JODHPUR     (Rajasthan) INDIA

 डाॅ.अज़ीज़ मुंतसिर की अरबी कविता का राजस्थानी भावानुवाद. 


दोस्तो , डाॅ. अज़ीज़  मुंतसिर Aziz Mountassir Aziz Mountassir  मोरक्को  एवं उत्तरी अफ्रीका  से शांति और भाईचारा के  कवि के रूप में  विश्वभर में प्रसिद्धि प्राप्त हैं ।उनके अरबी में  6 कविता संग्रह प्रकाशित हैं । उन्होंने  इस  उच्च स्तरीय  रचनात्मक उत्कृष्टता के निमित्त  सम्मान स्वरूप  दस से अधिक  डाॅक्टर की उपाधियां  अर्जित  की हैं । वे पांच अन्तरराष्ट्रीय कविता एंथोलाजीज में भी  योगदान कर चुके हैं  ।उनकी कविताओं और गीतों  के अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश,इटालियन,सर्बियाई, स्लोवेनियन, रूसी,  जर्मन, फिलिपीनो, और जापानी आदि भाषाओं  में बहुतेरे अनुवाद हुए हैं । राजस्थानी भाषा  में  उनकी कविता का यह पहला भावानुद अनुवाद है। इसे  आप तक पहुंचा रहा हूं । आशा करता हूं कि आपको पसंद आएगा ।


ज्ञातव्य रहे कि अज़ीज़ मुंतसिर  मोरक्को तथा उत्तरी अफ्रीका से रचनात्मकता और मानवता को समर्पित  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त कवि और राजदूत तो हैं ही, वे  रचनात्मकता  और मानवता के लिए  गठित  अन्तराष्ट्रीय मंच  के अध्यक्ष भी हैं। 


उत्तरी  अफ्रीका में  वाशिंगटन के बच्चों के लिए आंतरिक  प्रेस के निदेशक   के रूप  में  सेवा करते हुए वे  मोरक्को यूडब्ल्यूएमसी उत्तरी अफ्रीका संबंध  समन्वयक (संयुक्त  विश्व आन्दोलन के बच्चे) और मोरक्को  में  मानवता और शांति मिशन के लिए राजदूत के रूप में कार्यरत हैं । 


डाॅ.अज़ीज़ मुंतसिर  वर्तमान में  मोरक्को में अरब  मीडिया नेटवर्क  के सम्पर्क  समन्वयक भी  हैं । उनके  साहित्यिक कार्यों और मानवता की सेवा को दृष्टिगत रखते हुए  मोरक्को से राजदूत  के  प्रमाण  पत्र  में  सद्भावना स्वरूप  विश्व महासंघ  ने इनके महत्व को मान्यता दी है। वे बड़ी भावुकता और जुनून के साथ वैश्विक स्तर पर इस सेवा के लिए  समर्पित  हैं और एक मानवतावादी नेता और राजदूत  के रूप  में  बड़ी  रचनात्मकता से शांति के लिए काम कर रहे हैं ।


कविवर डाॅ. अज़ीज़ मुंतसिर अमीरात,दुबई ,रोमानिया, स्पेन,  मिश्र,ट्यूनीशिया, चीन, तुर्की,  बेल्जियम आदि देशों  में   बड़ी  संख्या  में आयोजित अन्तराष्ट्रीय  सांस्कृतिक सम्मेलनों  और अंतरराष्ट्रीय कविता  उत्सवों में  भाग ले चुके हैं । प्रतुत है उनकी कविता का  भावानुवाद:


अज़ीज़ मुंतसिर री अरबी कविता रौ 

राजस्थांनी  उल्थौ - मीठेस निरमोही  

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नाबाळगी

======


उणरै काळजै 

घणाई  उठ रैया  है धपळका अर

आत्मा ई  पसीज रैयी है कै 


एक बाळी  उमरिया गरीब  छोरी 

जिणरै नादांनी  भरियै  अर मजेदार  बोलां रै समचै 

उणरै दुख - संताप  नै घूंघटा मांय लुकाय अर 

ब्याव मांय  खुस व्हैण रौ सांग कर रैयी है 


ओ एक मूरत विहूंणै कैनवास री गळाई 

सुभट दीस रैयौ  है 

जिणरा रंग  पछतावौ कर  रैया   

अर बुरस  जूंनी  परम्परा सूं  जुड़ियोड़ी 

एक मा  रै इन्याव नै उघाड़  रैयौ है 


जिकौ उणरी नाबाळग धीव नै आपरै घरां  लेय  जाय  रैयौ है 

जठै उणरै बुढापै री ठाडाई रौ राज  व्हैला 


कांईं इण नाबळग आपरै इण अणमेळ गठजोड़ नै 

रजामंदी सूं  अंगेज्यौ है ?


कांईं वा आखै दिन उजास में  रैवण सारू सुतंतर व्हैला 

के उणनै  रात रौ अंधारौ  घेर लेवैला ?


फरियाद  किण सूं  करै जद उणरा सगळा सपना ई तूटग्या  है

अर ऐड़ा में कांईं  उणरै जीवण री आस व्हैला ?


बाळी उमरिया आ  गरीब  छोरी आपरी इण गठीज्योड़ी देह रै सागै 

नीं तौ टाबरपणै री बहारां  में  अर नीं ई 

मोटियारपणै  री मस्ती में जी सकैला  


" मा, थारै कीं  समझ में  आयौ के नीं  ?

" बापू , लागै है आप तौ समझ सूं कोसां अळगा हौ !"


उल्थौ -  मीठेस निरमोही 

Copyright @ Meethesh Nirmohi - JODHPUR     (Rajasthan) INDIA.

 अज़ीज़ मुंतसिर री अरबी कविता रौ 

राजस्थांनी  उल्थौ - मीठेस निरमोही  

नाबाळगी

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उणरै  काळजै 

घणाई उठ रैयौ है धपळका अर

आत्मा ई  पसीज रैयी है  

एक बाळी  उमरिया गरीब  छोरी 

जिणरै नादांनी  भरियै  अर मजेदार  बोलां रै समचै 

उणरै दुख - संताप  नै घूंघटा मांय लुकाय  

ब्याव मांय  खुस व्हैण रौ सांग  कर रैयी है 


ओ एक मूरत विहूंणै कैनवास री गळाई 

सुभट दीस रैयौ  है 

जिणरा रंग  पछतावौ कर  रैया   

अर बुरस  जूंनी  परम्परा सूं  जुड़ियोड़ी 

एक मा  रै इन्याव नै उघाड़  रैयौ है 


जिकौ उणरी नाबाळग धीव नै आपरै घरां  लेय  जाय  रैयौ है 

जठै उणरै बुढापै री ठाडाई रौ राज  व्हैला 


कांईं इण नाबळग आपरै इण अणमेळ गठजोड़ नै 

रजामंदी सूं  अंगेज्यौ है ?


कांईं वा आखै दिन उजास में  रैवण सारू सुतंतर व्हैला 

के उणनै  रात रौ अंधारौ  घेर लेवैला ?


फरियाद  किण सूं  करै जद उणरा सगळा सपना ई तूटग्या  है

अर ऐड़ा में कांईं  उणरै जीवण री आस व्हैला ?


बाळी उमरिया आ  गरीब  छोरी आपरी इण गठीज्योड़ी देह रै सागै 

नीं तौ टाबरपणै री बहारां  में  अर नीं ई 

मोटियारपणै  री मस्ती में जी सकैला  


" मा, थारै कीं  समझ में  आयौ के नीं  ?

" बापू , लागै है आप तौ समझ सूं कोसां अळगा हौ !"

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उल्थौ -  मीठेस निरमोही 

Copyright @ Meethesh Nirmohi, JODHPUR ( Rajasthan) INDIA.

المنتدى الدولي للإبداع والإنسانية المملكة المغربية

Dra Hc Maria Elena Ramirez  🌹✨🌹La Inmaculada Concepción De La Santísima Virgen María.✨✨🕊️🌹Conceda La Paz En El Mundo. AMÉN.  La Inmacula...