Saturday, February 6, 2021

नाबाळगी

Aziz Mountassir Morocco by

Meethesh Nirmohi - JODHPUR     (Rajasthan) INDIA

 डाॅ.अज़ीज़ मुंतसिर की अरबी कविता का राजस्थानी भावानुवाद. 


दोस्तो , डाॅ. अज़ीज़  मुंतसिर Aziz Mountassir Aziz Mountassir  मोरक्को  एवं उत्तरी अफ्रीका  से शांति और भाईचारा के  कवि के रूप में  विश्वभर में प्रसिद्धि प्राप्त हैं ।उनके अरबी में  6 कविता संग्रह प्रकाशित हैं । उन्होंने  इस  उच्च स्तरीय  रचनात्मक उत्कृष्टता के निमित्त  सम्मान स्वरूप  दस से अधिक  डाॅक्टर की उपाधियां  अर्जित  की हैं । वे पांच अन्तरराष्ट्रीय कविता एंथोलाजीज में भी  योगदान कर चुके हैं  ।उनकी कविताओं और गीतों  के अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश,इटालियन,सर्बियाई, स्लोवेनियन, रूसी,  जर्मन, फिलिपीनो, और जापानी आदि भाषाओं  में बहुतेरे अनुवाद हुए हैं । राजस्थानी भाषा  में  उनकी कविता का यह पहला भावानुद अनुवाद है। इसे  आप तक पहुंचा रहा हूं । आशा करता हूं कि आपको पसंद आएगा ।


ज्ञातव्य रहे कि अज़ीज़ मुंतसिर  मोरक्को तथा उत्तरी अफ्रीका से रचनात्मकता और मानवता को समर्पित  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त कवि और राजदूत तो हैं ही, वे  रचनात्मकता  और मानवता के लिए  गठित  अन्तराष्ट्रीय मंच  के अध्यक्ष भी हैं। 


उत्तरी  अफ्रीका में  वाशिंगटन के बच्चों के लिए आंतरिक  प्रेस के निदेशक   के रूप  में  सेवा करते हुए वे  मोरक्को यूडब्ल्यूएमसी उत्तरी अफ्रीका संबंध  समन्वयक (संयुक्त  विश्व आन्दोलन के बच्चे) और मोरक्को  में  मानवता और शांति मिशन के लिए राजदूत के रूप में कार्यरत हैं । 


डाॅ.अज़ीज़ मुंतसिर  वर्तमान में  मोरक्को में अरब  मीडिया नेटवर्क  के सम्पर्क  समन्वयक भी  हैं । उनके  साहित्यिक कार्यों और मानवता की सेवा को दृष्टिगत रखते हुए  मोरक्को से राजदूत  के  प्रमाण  पत्र  में  सद्भावना स्वरूप  विश्व महासंघ  ने इनके महत्व को मान्यता दी है। वे बड़ी भावुकता और जुनून के साथ वैश्विक स्तर पर इस सेवा के लिए  समर्पित  हैं और एक मानवतावादी नेता और राजदूत  के रूप  में  बड़ी  रचनात्मकता से शांति के लिए काम कर रहे हैं ।


कविवर डाॅ. अज़ीज़ मुंतसिर अमीरात,दुबई ,रोमानिया, स्पेन,  मिश्र,ट्यूनीशिया, चीन, तुर्की,  बेल्जियम आदि देशों  में   बड़ी  संख्या  में आयोजित अन्तराष्ट्रीय  सांस्कृतिक सम्मेलनों  और अंतरराष्ट्रीय कविता  उत्सवों में  भाग ले चुके हैं । प्रतुत है उनकी कविता का  भावानुवाद:


अज़ीज़ मुंतसिर री अरबी कविता रौ 

राजस्थांनी  उल्थौ - मीठेस निरमोही  

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नाबाळगी

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उणरै काळजै 

घणाई  उठ रैया  है धपळका अर

आत्मा ई  पसीज रैयी है कै 


एक बाळी  उमरिया गरीब  छोरी 

जिणरै नादांनी  भरियै  अर मजेदार  बोलां रै समचै 

उणरै दुख - संताप  नै घूंघटा मांय लुकाय अर 

ब्याव मांय  खुस व्हैण रौ सांग कर रैयी है 


ओ एक मूरत विहूंणै कैनवास री गळाई 

सुभट दीस रैयौ  है 

जिणरा रंग  पछतावौ कर  रैया   

अर बुरस  जूंनी  परम्परा सूं  जुड़ियोड़ी 

एक मा  रै इन्याव नै उघाड़  रैयौ है 


जिकौ उणरी नाबाळग धीव नै आपरै घरां  लेय  जाय  रैयौ है 

जठै उणरै बुढापै री ठाडाई रौ राज  व्हैला 


कांईं इण नाबळग आपरै इण अणमेळ गठजोड़ नै 

रजामंदी सूं  अंगेज्यौ है ?


कांईं वा आखै दिन उजास में  रैवण सारू सुतंतर व्हैला 

के उणनै  रात रौ अंधारौ  घेर लेवैला ?


फरियाद  किण सूं  करै जद उणरा सगळा सपना ई तूटग्या  है

अर ऐड़ा में कांईं  उणरै जीवण री आस व्हैला ?


बाळी उमरिया आ  गरीब  छोरी आपरी इण गठीज्योड़ी देह रै सागै 

नीं तौ टाबरपणै री बहारां  में  अर नीं ई 

मोटियारपणै  री मस्ती में जी सकैला  


" मा, थारै कीं  समझ में  आयौ के नीं  ?

" बापू , लागै है आप तौ समझ सूं कोसां अळगा हौ !"


उल्थौ -  मीठेस निरमोही 

Copyright @ Meethesh Nirmohi - JODHPUR     (Rajasthan) INDIA.

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