Search This Blog

Saturday, February 6, 2021

 अज़ीज़ मुंतसिर री अरबी कविता रौ 

राजस्थांनी  उल्थौ - मीठेस निरमोही  

नाबाळगी

======


उणरै  काळजै 

घणाई उठ रैयौ है धपळका अर

आत्मा ई  पसीज रैयी है  

एक बाळी  उमरिया गरीब  छोरी 

जिणरै नादांनी  भरियै  अर मजेदार  बोलां रै समचै 

उणरै दुख - संताप  नै घूंघटा मांय लुकाय  

ब्याव मांय  खुस व्हैण रौ सांग  कर रैयी है 


ओ एक मूरत विहूंणै कैनवास री गळाई 

सुभट दीस रैयौ  है 

जिणरा रंग  पछतावौ कर  रैया   

अर बुरस  जूंनी  परम्परा सूं  जुड़ियोड़ी 

एक मा  रै इन्याव नै उघाड़  रैयौ है 


जिकौ उणरी नाबाळग धीव नै आपरै घरां  लेय  जाय  रैयौ है 

जठै उणरै बुढापै री ठाडाई रौ राज  व्हैला 


कांईं इण नाबळग आपरै इण अणमेळ गठजोड़ नै 

रजामंदी सूं  अंगेज्यौ है ?


कांईं वा आखै दिन उजास में  रैवण सारू सुतंतर व्हैला 

के उणनै  रात रौ अंधारौ  घेर लेवैला ?


फरियाद  किण सूं  करै जद उणरा सगळा सपना ई तूटग्या  है

अर ऐड़ा में कांईं  उणरै जीवण री आस व्हैला ?


बाळी उमरिया आ  गरीब  छोरी आपरी इण गठीज्योड़ी देह रै सागै 

नीं तौ टाबरपणै री बहारां  में  अर नीं ई 

मोटियारपणै  री मस्ती में जी सकैला  


" मा, थारै कीं  समझ में  आयौ के नीं  ?

" बापू , लागै है आप तौ समझ सूं कोसां अळगा हौ !"

-------------


उल्थौ -  मीठेस निरमोही 

Copyright @ Meethesh Nirmohi, JODHPUR ( Rajasthan) INDIA.

No comments:

المنتدى الدولي للإبداع والإنسانية المملكة المغربية

Mazdak Panjei  A Reflection on the Future of "Imagination" in Art How Can We Prevent the "Death of Imagination in the Metaver...