My Poetry - by ( Aziz Mountassir)
Translated in Hindi by Professor Dr. Deepti Gupta from Pune, India
قصيدة بعنوان شعري للشاعر عزيز منتصر مترجمة للغة الهندية
.
मेरा काव्य
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
शान्ति और मुहब्बत बन जाए
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
दुनिया भर के कफ़न फ़ना कर दे
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
सैनिक को शिष्ट नागरिक में रुपान्तरित कर दे ।
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
विधवाओं और अनाथों के आंसुओं में सोख लें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
ऐसा उजला ग्रह बन जाए, जिसके बिना
दुनिया के देश अंधकारमय रहें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
ऐसी अनूठी शान्ति बन जाए
जो प्यार,सहास्तित्व और सुरक्षा के शस्त्रों से लड़ें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
अरबवासियों और युद्ध और बारूद के धुएं से दूर दुनिया के देशों के लिए
भाई-चारे की कौली बन जाए ।
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
पर्वतों से जी भर कर प्रणय निवेदन करती हुई
सुकून भरी लहरों वाले महासागरों और सागरों के सूखे रेत को शान्त और शीतल बना दे
डा. दीप्ति गुप्ता
Poem by Aziz Mountassir
Translated into
English by
Houda Elfchtali
MY POETRY
I want my poetry..
To be peace and love
I want my poetry..
To tear up the shrouds
I want my poetry..
To transform
The soldier
Into a civil citizen
I want my poetry..
The turn my absence
Into windows '
And orphans 'tears
I want my poetry..
To be a planet
Without which
The nations are dark
I want my poetry..
To be that kind of peace
That will fight
with the weapons of love,
Of coexistence
and of security
I want my poetry ..
To be a brotherhood hug
Between Arabs
and the world
Far from the wars
And far from the smokes
On oceans and seas
Where the waves are calm
And where
They address the mounts
With bounty
I want my poetry
To make the sea sands
Be full of peace
Poem by
Aziz Mountassir
Translated into
English Azizby
Houda Elfchtali
Translated in Hindi by Professor Dr. Deepti Gupta from Pune, India
قصيدة بعنوان شعري للشاعر عزيز منتصر مترجمة للغة الهندية
.
मेरा काव्य
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
शान्ति और मुहब्बत बन जाए
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
दुनिया भर के कफ़न फ़ना कर दे
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
सैनिक को शिष्ट नागरिक में रुपान्तरित कर दे ।
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
विधवाओं और अनाथों के आंसुओं में सोख लें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
ऐसा उजला ग्रह बन जाए, जिसके बिना
दुनिया के देश अंधकारमय रहें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
ऐसी अनूठी शान्ति बन जाए
जो प्यार,सहास्तित्व और सुरक्षा के शस्त्रों से लड़ें
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
अरबवासियों और युद्ध और बारूद के धुएं से दूर दुनिया के देशों के लिए
भाई-चारे की कौली बन जाए ।
मैं चाहता हूं कि मेरा काव्य
पर्वतों से जी भर कर प्रणय निवेदन करती हुई
सुकून भरी लहरों वाले महासागरों और सागरों के सूखे रेत को शान्त और शीतल बना दे
डा. दीप्ति गुप्ता
Poem by Aziz Mountassir
Translated into
English by
Houda Elfchtali
MY POETRY
I want my poetry..
To be peace and love
I want my poetry..
To tear up the shrouds
I want my poetry..
To transform
The soldier
Into a civil citizen
I want my poetry..
The turn my absence
Into windows '
And orphans 'tears
I want my poetry..
To be a planet
Without which
The nations are dark
I want my poetry..
To be that kind of peace
That will fight
with the weapons of love,
Of coexistence
and of security
I want my poetry ..
To be a brotherhood hug
Between Arabs
and the world
Far from the wars
And far from the smokes
On oceans and seas
Where the waves are calm
And where
They address the mounts
With bounty
I want my poetry
To make the sea sands
Be full of peace
Poem by
Aziz Mountassir
Translated into
English Azizby
Houda Elfchtali
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