By Ashok Kumar
गज़ल
कत्ल करके कहती है जालिम ,कातिल नही हूँ मै
सिसक रहा मासुम सा दिल मेरा गालिब नही हूँ मै
खाक मे मिला के मुझे देखो कैसे मुस्कुरा रही है
नरम टूकडो को दिल के देखो कैसे सहला रही है
कितनी मासुमियत से देखो अपने अश्को को बहा रही है
गिला नही मुझे मौत से मगर देखो वो उस गली जा रही है
बिखर गया हूँ आज सुखे पत्तो की तरह इस जहाँन मे
खुश रहे तू सदा रुह से मेरी यही आवाज आ रही है
INDIA
MAY 19,2020
©®
ASHOK KUMAR
PRINCIPAL
INTERNATIONAL PEACE ACTIVIST
INTERNATIONAL BILINGUAL POET
AMBASSADOR OF IFCH
NEW BASTI PATTI CHAUDHARAN
BARAUT BAGHPAT
UTTAR PRADESH
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